नमस्कार महाराष्ट्र या चॅनल वर लवकरच माजी सेनिकांची वीर गाथा
आपल्या सोबत आहेत पांडुरंग लक्ष्मण पवार जे महार रेजिमेन्ट मध्ये चीन सोबत च्या लढाईत व पाकिस्थान सोबत च्या १९६५ व १९७१ या युध्दा ची वीर गाथा
मराठवाडा,"एक शेर के बच्चेने इनको बनाया फौजी "
72 साल के इस भूतपूर्व फौजी का नाम है पांडुरंग लक्ष्मण पवार (महार रेजिमेंट ),चायना ओर पाकिस्तान के खिलाप जँग में हिस्सा ले चुके है .18 साल की उमर में फोज में दाखिल हुऐ, तबतक ऐ एकही काम करते थे, दिनभर जंगलमें बकरिया चराना और श्याममें कुस्ती के आखाडे में मेहनत करना ,एक दिन जंगलमें इंनको शेर के तीन बच्चे मिले ,इन्होने उसमें एक बच्चे को जँगली बिल्ली का बच्चा समजकर घर उठा लाये ,पिताजी ने पूछा ऐ तो शेर का बच्चा है इसे खेतमें ही रहने दो तबसे वो गावं से दूर खेत में अपनी बकरियो के साथ इस शेर के शावक के साथ रहने लगे ,शावक भी बकरी का दूध और ज्वारी की रोटी खाकर 3 महिने का होगया,बकरियो के साथ वो दीनभर खेल कुद करता. अब वो पुरी तरह पालतू हो गया था .आसपास के गावं के लोग इसको देखने आते ,कुस्ती के आखाडे में भी इस शेर को कँधे पे बिठाकर ले जाते .लेकींन एकदिन ....इस शाकाहरी शेरको इस फोजी के पिताने मांस का तुकडा खिलाया और गुस्से उस शेर ने इनके पिताजी के हाथ को जोर से काटा ...पिताजी ने तलवार लायी लेकींन शेर को बचाने इस फोजी की माँ आयी ..दुर्घटना टली ....बापूने ठानली थी अब ऐ शेर यहा नही रहेगा, एकदिन नांदेडमें कोई सर्कस आयी थी ,बापू ने पांडुरंग की गैरहाजरीमें इस शेर को सिर्फ 500 रुपयो में बेच दिया .श्याम को जब सारी हकीकत जब मालूम् हुई तो पांडुरंग को काफी सदमा लगा ,वो पिता को सबक सीखाने के लिऐ गुस्सेसे कही दूर भाग जाना चाहते थे, वो नांदेड आये ,रेल स्टेशन के पास सेना की भर्ती चल रहीती ,वो लाईन जाकर खडे हो गये ,इनका भारी भरक्कम् गठिला शरीर देखकर अफसर ने कहा फोजमें आवोगे ...इधर से हा थी ओर......कुछ देर बाद चयन हो चुका था ,ओर एक शेर पालने वाला पहलवान महार रेजिमेंट का शिपाई बन चुका था
आपल्या सोबत आहेत पांडुरंग लक्ष्मण पवार जे महार रेजिमेन्ट मध्ये चीन सोबत च्या लढाईत व पाकिस्थान सोबत च्या १९६५ व १९७१ या युध्दा ची वीर गाथा
मराठवाडा,"एक शेर के बच्चेने इनको बनाया फौजी "
72 साल के इस भूतपूर्व फौजी का नाम है पांडुरंग लक्ष्मण पवार (महार रेजिमेंट ),चायना ओर पाकिस्तान के खिलाप जँग में हिस्सा ले चुके है .18 साल की उमर में फोज में दाखिल हुऐ, तबतक ऐ एकही काम करते थे, दिनभर जंगलमें बकरिया चराना और श्याममें कुस्ती के आखाडे में मेहनत करना ,एक दिन जंगलमें इंनको शेर के तीन बच्चे मिले ,इन्होने उसमें एक बच्चे को जँगली बिल्ली का बच्चा समजकर घर उठा लाये ,पिताजी ने पूछा ऐ तो शेर का बच्चा है इसे खेतमें ही रहने दो तबसे वो गावं से दूर खेत में अपनी बकरियो के साथ इस शेर के शावक के साथ रहने लगे ,शावक भी बकरी का दूध और ज्वारी की रोटी खाकर 3 महिने का होगया,बकरियो के साथ वो दीनभर खेल कुद करता. अब वो पुरी तरह पालतू हो गया था .आसपास के गावं के लोग इसको देखने आते ,कुस्ती के आखाडे में भी इस शेर को कँधे पे बिठाकर ले जाते .लेकींन एकदिन ....इस शाकाहरी शेरको इस फोजी के पिताने मांस का तुकडा खिलाया और गुस्से उस शेर ने इनके पिताजी के हाथ को जोर से काटा ...पिताजी ने तलवार लायी लेकींन शेर को बचाने इस फोजी की माँ आयी ..दुर्घटना टली ....बापूने ठानली थी अब ऐ शेर यहा नही रहेगा, एकदिन नांदेडमें कोई सर्कस आयी थी ,बापू ने पांडुरंग की गैरहाजरीमें इस शेर को सिर्फ 500 रुपयो में बेच दिया .श्याम को जब सारी हकीकत जब मालूम् हुई तो पांडुरंग को काफी सदमा लगा ,वो पिता को सबक सीखाने के लिऐ गुस्सेसे कही दूर भाग जाना चाहते थे, वो नांदेड आये ,रेल स्टेशन के पास सेना की भर्ती चल रहीती ,वो लाईन जाकर खडे हो गये ,इनका भारी भरक्कम् गठिला शरीर देखकर अफसर ने कहा फोजमें आवोगे ...इधर से हा थी ओर......कुछ देर बाद चयन हो चुका था ,ओर एक शेर पालने वाला पहलवान महार रेजिमेंट का शिपाई बन चुका था
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